रिक्शे वाले का बेटा गोविन्द जायसवाल बना IAS अफसर(SUCCESS STORY) :-
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Govind Jaiswal Success Story Hindi :-
हम आपको ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने बिना किसी सुख-सुविधा के संघर्ष करके IAS अफसर बने हैं उस व्यक्ति का नाम गोविन्द जायसवाल है ये वाराणसी में काशी के रहने वाले है
गोविंद जायसवाल काशी के अलईपुरा में रहते थे इनके पिता का नाम नारायण जायसवाल था जो रिक्शा चलाते थे गोविंद जायसवाल को IAS अफसर बनाने में इनके पिता नारायण जायसवाल का बहुत संघर्ष है
गोविंद का पूरा परिवार 10/12 की एक कोठरी में रहता था गोविन्द ,दो बहन और इनके पिता एक साथ एक कोठरी में रहते थे इस छोटी सी जगह में नहाने धोने से लेकर खाने-पीने का सब काम यहीं पर करते थे पहनने के लिए कपड़े नहीं थे बहन को लोग दूसरों के घर बर्तन मांजने की वजह से ताने देते थे गोविंद की मां की बीमारी से मौत हो गई थी इनके पिता के पास साल 1995 में करीब 35 रिक्शे थे पत्नी के बीमारी पर 20 रिक्शे बेंच दिये थे
गोविन्द अपनी पढ़ाई और किताबों का खर्च निकालने के लिए क्लास 8 से ही ट्यूशन पढ़ाने लगे । बचपन से ही गोविंद को पढ़ाई लिखाई करने पर लोगों के ताने सुनने पड़ते थे " चाहे तुम जितना पढ़ लो चलाना तो रिक्शा ही है " पर गोविंद इन सब के बावजूद पढ़ाई में जुटे रहते थे
गोविन्द अपनी पढ़ाई और किताबों का खर्च निकालने के लिए क्लास 8 से ही ट्यूशन पढ़ाने लगे । बचपन से ही गोविंद को पढ़ाई लिखाई करने पर लोगों के ताने सुनने पड़ते थे " चाहे तुम जितना पढ़ लो चलाना तो रिक्शा ही है " पर गोविंद इन सब के बावजूद पढ़ाई में जुटे रहते थे
रात में पढ़ाई के लिए अक्सर मोमबत्ती ढिबरी इत्यादि का सहारा लेना पड़ता था गोविंद जहां पर रहते थे उस गली में जनरेटर इत्यादि का काफी शोर होता था इसलिए वह कान में रुई डाल कर पढ़ाई करते थे
गोविंद ने बताया बचपन में एक बार एक दोस्त के घर खेलने गया था उसके पिता ने मुझे कमरे में बैठा देख कर बेइज्जत कर घर से बाहर कर दिया और कहा दोबारा घर में घुसने की हिम्मत न करना उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैं रिक्शे वाले का बेटा हूँ उस समय मेरी उम्र 13 साल थी लेकिन उस दिन मैंने ठान लिया कि मैं IAS ही बनूंगा क्योंकि यह सबसे ऊंचा पद होता है
गोविंद ने बताया बचपन में एक बार एक दोस्त के घर खेलने गया था उसके पिता ने मुझे कमरे में बैठा देख कर बेइज्जत कर घर से बाहर कर दिया और कहा दोबारा घर में घुसने की हिम्मत न करना उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैं रिक्शे वाले का बेटा हूँ उस समय मेरी उम्र 13 साल थी लेकिन उस दिन मैंने ठान लिया कि मैं IAS ही बनूंगा क्योंकि यह सबसे ऊंचा पद होता है
12वीं के बाद इंजीनियरिंग करने का विचार आया लेकिन जब पता चला कि application form की फीस ₹500 है तब मैंने अपना विचार बदल दिया और BHU से ग्रेजुएशन करने लगे और Final Preparation के लिए दिल्ली चले गए ।
गोविन्द के पिता ने 2004-2005 में गोविंद की सिविल की तैयारी के लिए दिल्ली भेजने के लिए बाकी रिक्शे भी बेंच दिये पढ़ाई में कोई कमी न हो इसलिए एक रिक्शा वह खुद चलाने लगे । 2006 में पैर में टिटनेस हो गया लेकिन यह बात गोविंद को नहीं बताई । पिता का ख्याल रखने के लिए बहन बारी-बारी से आया करती थी
जब गोविंद को Form,किताब और किराए के लिए पैसों की जरूरत पड़ी तो उन्होंने अपनी इकलौती जमीन ₹30000 में बेंच दी गोविन्द के पिता खाना तक यही सोच कर खाते थे कि दो रोटी ज्यादा खाऊँगा तो गोविन्द के लिये खर्च नहीं भेज पाऊँगा गोविन्द भी अपने पिता के संघर्ष को समझा खूब मेहनत की । गोविंद परीक्षा के दौरान लगातार 18 घंटे पढ़ाई करते थे और पैसा बचाने के लिए कई बार खाना भी नहीं खाते थे
जब रिजल्ट आया तो लोगों के आंखों में आंसू आ गए क्योंकि एक रिक्शे वाले के बेटे ने इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा दिया और 24 साल की उम्र में 2006 में 38 वां स्थान लाकर अपने परिवार की जिंदगी बदल दी गोविंद की शादी चंदना नाम की लड़की से हुई जो IPS अफसर है दोनों गोवा में ही पोस्टेड थें
गोविंद जिस कोठरी में रहते थे उस कोठरी में आज भी उनका सामान,बेड,अलमारी रखा हुआ है और कोठारी का किराया भेजते रहते हैं गोविंद का परिवार इस कमरे को लकी मानता है
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